Rachana Priyadarshini – SAWM Sisters https://dev.sawmsisters.com South Asian Women in Media Tue, 03 Jan 2023 15:53:57 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.6.1 https://dev.sawmsisters.com/wp-content/uploads/2022/08/sawm-logo-circle-bg-100x100.png Rachana Priyadarshini – SAWM Sisters https://dev.sawmsisters.com 32 32 असम का यह ज़िला जो साल के आठ महीने बाढ़ में डूबा रहता है https://dev.sawmsisters.com/%e0%a4%85%e0%a4%b8%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%af%e0%a4%b9-%e0%a5%9b%e0%a4%bf%e0%a4%b2%e0%a4%be-%e0%a4%9c%e0%a5%8b-%e0%a4%b8%e0%a4%be%e0%a4%b2-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%86%e0%a4%a0-%e0%a4%ae/ Tue, 03 Jan 2023 15:53:57 +0000 https://sawmsisters.com/?p=6165 This story first appeared in Youth Ki Awaaz भारत के असम राज्य के उत्तर पूर्वी हिस्से में स्थित है धेमाजी जिला। इसका मुख्यालय धेमाजी में स्थित है। इसके उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पूर्व में तिन्सुकीआ जिला, दक्षिण में डिब्रूगढ़ जिला तथा पश्चिम में लखीमपुर जिला स्थित है। कभी आसाम के ‘धान का कटोरा’ के नाम […]]]>

This story first appeared in Youth Ki Awaaz

भारत के असम राज्य के उत्तर पूर्वी हिस्से में स्थित है धेमाजी जिला। इसका मुख्यालय धेमाजी में स्थित है। इसके उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पूर्व में तिन्सुकीआ जिला, दक्षिण में डिब्रूगढ़ जिला तथा पश्चिम में लखीमपुर जिला स्थित है। कभी आसाम के ‘धान का कटोरा’ के नाम से मशहूर इस जिले के अधिकांश निवासी मिसिंग जनजाति के हैं। इनके अलावा यहां हेजोंग, बोडो तथा सोनोवाल जनजाति के लोग भी रहते हैं।

ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर में स्थित धेमाजी जिला चारों से से अरुणाचल प्रदेश की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। वर्षों से यह शहर अपने धान तथा सरसों के खेतों के लिए विख्यात रहा है। साथ ही, हिमालय और ब्रह्मपुत्र नदी के होने से यहां की धरती को अन्य कई प्रकार की वनस्पतियों से आच्छादित रहने का गौरव प्राप्त है। प्राचीन काल में ऐतिहासिक अहोम शासकों की राजधानी रहा यह शहर इक्कीसवीं सदी में सबसे पहले चर्चा में तब आया था, वर्ष 2004 में उल्फा उग्रवादियों ने एक स्थानीय स्कूल में हमला करके तीस से अधिक बच्चों की जान ले ली थी। उसके बाद वर्ष 2018 में असम के धेमाजी और डिब्रूगढ़ जिलों को जोड़ने वाले देश के सबसे बड़े रेल-रोड ब्रिज बोगीबील पुल ने विश्व पटल पर इस जिले की पहचान स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। यह पुल ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर और दक्षिण तट को जोड़ता है।

साल के आठ महीने रहती है बाढ़ की स्थिति

ब्रह्मपुत्र नदी को असम की लाइफलाइन माना जाता है। आधिकारिक सूचना के अनुसार, यह जिला हर साल मई से लेकर अक्टूबर के बीच ब्रह्मपुत्र नदी तथा उसकी सहायक नदियों में उफान आने से यह इलाका पूरी तरह बाढ़ से प्रभावित रहता है, लेकिन बीते दो दशक में यह स्थिति पूरी तरह से बदल गयी है। फिलहाल जो स्थिति है, उसमें यह कहना बहुत ही मुश्किल है कि बाढ़ का पानी कब धेमाजी के गांवों में तबाही मचाने के लिए पहुंच जायेगा। असम के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (ASDMA) के अनुसार गत वर्ष धेमाजी जिले में बाढ़ से 15,084 लोग प्रभावित हुए थे। स्थानीय लोगों की मानें, तो अस्सी के दशक से पहले धेमाजी में जून से सितंबर के बीच बरसात का मौसम होता था। इस दौरान भारी बारिश होती थी। बावजूद इसके बाढ़ की स्थिति कभी-कभार ही करना पड़ता था, लेकिन 1984 के बाद से शायद ही कोई ऐसा साल बीता हो, जब धेमाजी ने बाढ़ आपदा न आयी हो। स्थानीय निवासी दीप जिमे कहते हैं- “अब तो हालात यह हैं कि साल के आठ महीने लोग बाढ़ की विभीषिका झेलते हुए रिलीफ कैंप में बिताते हैं और बाकी के चार महीनों में, जब पानी नीचे उतरता है, तो अपनी आजीविका हेतु खेती-बाड़ी या अन्य कोई कार्य-व्यापार करते हैं।”

बाढ़ का पानी अपने साथ लाता है सैकड़ों टन गाद

वर्तमान में 65 ग्राम पंचायतों सहित कुल 1236 रिहायशी गांवों के समूह धेमाजी में अब तक 79 गांव ऐसे भी हैं, जो बाढ़ की विभीषिका में पूरी तरह से उजड़ चुके हैं। अब वहां कोई आबादी नहीं बसती। बाढ़ का पानी अपने साथ पहाड़ों से भारी मात्रा में बालू भी बहा कर लाता है, जो गाद के रूप में खेतों में जमा हो जाता है। जब तक इस गाद को हटाया न जाये, तब तक यहां खेती-बाड़ी करना मुश्किल होता है। मेदिपोमुआ गांव के निवासी शिवशंकर मोइत्रो बताते हैं कि ”इस इलाके में मूल रूप से धान की खेती होती है। इसके अलावा हमलोग मटर, आलू और लहसुन भी उगा लेते हैं। पहले खेती-बाड़ी करके ही हमारा गुजारा हो जाता था, लेकिन अब बाढ़ और उसके बाद जमनेवाले बालू के गाद के कारण खेती-बाड़ी को काफी नुकसान पहुंचा है। आठ महीने हम बाढ़ की परेशानी झेलते हैं और फिर एक-डेढ महीने खेतों में जमे गाद को हटाने में लग जाते हैं। उसके बाद बचे समय में ही जो थोड़ा-बहुत उग पाया, वो उगा कर किसी तरह अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं।” मेदिपोउमा गांव की निवासी मिथाली दोले कहती हैं-

“बाढ़ ने हमारे घर-परिवार तथा आजीविका के साथ-साथ हमारे पालतू पशु-पक्षियों को भी काफी नुकसान पहुंचाया है। लाख कोशिशों के बावजूद हर साल सैकड़ों की संख्या में इनकी मौत होती है।” वह आगे बताती हैं कि- ”बाढ़ के दौरान प्रशासन द्वारा हर गांव में एक नाव की सुविधा मुहैया करवायी जाती है। जरूरी सामान लाने के लिए हमें नाव पर बैठ कर 15-20 किलोमीटर दूर बाजार जाना पड़ता है। हमारे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई भी इससे कुप्रभावित होती है।”

कई गांवों पर मंडरा रहा है अस्तित्व का संकट

इस क्षेत्र में बाढ़ के प्रभावों का अध्ययन करने एवं स्थानीय स्तर पर राहत कार्य चलानेवाली स्वैच्छिक संस्था रूरल वॉलंटियर सेंटर के निदेशक लुइत गोस्वामी कहते हैं- ”पिछले कुछ दशकों में विकास के नाम पर भारी संख्या में होनेवाली पेड़ों तथा पहाड़ों की कटाई की वजह से आज यह स्थिति उत्पन्न हुई है। पहले करीब 3000 फीट ऊंचे तिब्बती पठारों से बहता हुआ ब्रह्मपुत्र नदी का पानी जब 150 मीटर की रफ्तार से जब नीचे आता था, तो रास्ते में पड़नेवाले पेड़, पठार, चट्टान आदि उसकी रफ्तार को कम करने में अहम भूमिका निभाते थे,लेकिन जैसे-जैसे इनकी संख्या कम होती गयी, वैसे-वैसे यह पानी सीधे आकर आसाम के मैदानी इलाकों में फैलने लगा है। ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियां इस दबाव का झेल नहीं पातीं। नतीजा साल-दर-साल बाढ़ की विभीषिका कठोर से कठोरतम होती जा रही है। कई गांवों का तो अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है।” बाढ़ की इस विभीषिका के सदंर्भ में जाने-माने पर्यावरणविद तथा अशोका फेलोशिप से सम्मानित प्रोफेसर रविंद्र की मानें तो ‘हम जाने-अंजाने विकास के नाम पर अपने विनाश का जश्न मना रहे हैं। विकास का वास्तविक आनंद प्रकृति को साथ लेकर चलने पर ही प्राप्त किया जा सकता है, जबकि सरकार ठीक इसका उल्टा कर रही है। अगर समय रहते इस भूल को सुधारा न गया, तो धेमाजी जैसे कई इलाकों की सभ्यता-संस्कृति का पूरा समूल जलमग्न हो सकता है।’

Link to original story

]]>